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“Devshayani Ekadashi 2025 :देवशयनी एकादशी 2025 व्रत की कथा और पूजन मुहूर्त | कब और कैसे करें व्रत?”

On: July 6, 2025 4:14 AM
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Devshayani Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में देवशयनी को बेहद पुण्यदायी माना गया है. माना जाता है कि इस दिन व्रत व विधिपूर्वक पूजन करने से जातक सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है. इस दिन से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और पृथ्वी का कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं.

देवशयनी एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त (Devshayani Ekadashi 2025 Shubh muhurt)

पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 05 जुलाई को शाम 06 बजकर 58 मिनट पर शुरू हो चुकी है और इसकी तिथि का समापन 06 जुलाई आज रात 9 बजकर14 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, इस साल 6 जुलाई दिन रविवार यानी आज देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जा रहा है.

देवशयनी एकादशी चौघड़िया मुहूर्त 

लाभ (उन्नति)- सुबह 08.45 बजे से सुबह 10.28 बजे तक
अमृत (सर्वोत्तम)- सुबह 10.28 बजे से दोपहर 12.11 बजे तक
शुभ (उत्तम)- दोपहर 01.54 बजे से दोपहर 03.38 बजे तक
शुभ (उत्तम)- शाम 07.04 से लेकर 08. 21 तक
अमृत (सर्वोत्तम)- शाम 08.21 बजे से रात 09.38 बजे तक

देवशयनी एकादशी पूजन विधि

देवशयनी एकादशी के दिन विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा करें. सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद भगवान की मूर्ति स्थापित करें और उन्हें सफेद या पीले रंग के वस्त्र पहनाएं. इसके बाद उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं. फिर भगवान विष्णु को तुलसी दल और पीले फूल अर्पित करें.इसके बाद एकादशी व्रत कथा पढ़ें और आरती के बाद भोग लगाएं.

देवशयनी एकादशी व्रत की कथा

देवशयनी एकादशी व्रत कथा का वर्णन खुद भगवान श्रीकृष्ण ने किया है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इस वृतांत को धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करते थे। मांधाता के राज्य में प्रजा सुखी थी। एक बार उनके राज्य में तीन साल तक वर्षा नहीं होने की वजह से भयंकर अकाल पड़ा गया था। अकाल से चारों ओर त्रासदी का माहौल बन गया था। इस वजह से यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि कम होने लगे थे। प्रजा ने अपने राजा के पास जाकर अपने दर्द के बारे में बताया।
राजा इस अकाल से चिंतित थे। उन्हें लगता था कि उनसे आखिर ऐसा कौन सा पाप हो गया, जिसकी सजा इतने कठोर रुप में मिल रहा था। इस संकट से मुक्ति पाने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। जंगल में विचरण करते हुए एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे गए। ऋषिवर ने राजा का कुशलक्षेम और जंगल में आने कारण पूछा।

राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि में पूरी निष्ठा से धर्म का पालन करता हूं, फिर भी में राज्य की ऐसी हालत क्यों है? कृपया इसका समाधान करें। राजा की बात सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा कि यह सतयुग है। इस युग में छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। महर्षि अंगिरा ने राजा मांधाता को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। महर्षि ने कहा कि इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।

महर्षि अंगिरा के निर्देश के बाद राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए। उन्होंने चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया, जिसके बाद राज्य में मूसलधार वर्षा हुई। ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष महत्व का वर्णन किया गया है। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के व्रत से भक्त की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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